बिहार विधानसभा चुनाव होगा विश्वास का वोट

निर्वाचन आयोग की निष्पक्षता और दक्षता की कसौटी होगा बिहार चुनाव
मुख्य संपादक कुलदीपसिंह नरेन्द्रसिंह राठोड

बिहार नयी विधानसभा चुनने के लिए 6 और 11 नवंबर को दो चरणों में मतदान करेगा, और मतगणना 14 नवंबर को होगी। साल 2025 का बिहार विधानसभा चुनाव न सिर्फ राजनीतिक वजहों से, बल्कि भारत में संकट से गुजर रही चुनावी विश्वसनीयता के लिहाज से भी अहम है। भारत निर्वाचन आयोग (ईसीआई) बिहार में बहुत कुछ दांव पर होने के बारे में बाखबर है, और इतना ही नहीं, मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने इसे ‘सभी चुनावों की मां’ बताया। आयोग ने बिहार से शुरू किये जा रहे 17 ऐसे उपायों की सूची बनायी है, जो चुनाव प्रक्रिया में जनता का भरोसा और मतदाता भागीदारी बढ़ा सकते हैं। एक मतदान केंद्र में पात्र मतदाताओं की औसत संख्या 819 होगी, और किसी केंद्र में मतदाताओं की अधिकतम संख्या पहले के 1,500 के मुकाबले अब 1,200 होगी। आयोग ने चुनाव प्रक्रिया के बारे में राजनीतिक दलों और अन्य पर्यवेक्षकों द्वारा उठायी गयी चिंताओं को भी ध्यान में रखा है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और वोटर-वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल (वीवीपैट) की गणना के अंतिम दो चरणों से पहले पोस्टल बैलेट की गिनती पूरी कर ली जायेगी। अगर फॉर्म 17सी और ईवीएम डेटा के बीच असंगति है, और अगर कहीं मॉक पोल डेटा नहीं मिटाया गया, तो वीवीपैट पर्चियों की गिनती अनिवार्य होगी। अन्य उपायों में मतदान केंद्रों पर मोबाइल फोन जमा करने की सुविधा और वास्तविक समय में (रियल-टाइम) मतदान प्रतिशत की अद्यतन स्थिति के लिए ‘ईसीआईनेट’ नामक वन-स्टॉप डिजिटल प्लेटफार्म शामिल हैं। हाल के चुनावों में मतदान प्रतिशत में अचानक बदलाव चिंता का विषय रहा है, और यह उपाय संशय दूर करने में मददगार हो सकता है। निगरानी के मकसद से सभी मतदान केंद्रों से लाइव फीड उपलब्ध होगी।

निर्वाचन आयोग द्वारा मतदाता सूचियों के जून से शुरू हुए विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) की अचानक घोषणा को देखते हुए, बिहार चुनाव ने इस समय विशेष राष्ट्रीय महत्व हासिल कर लिया है। आयोग इस प्रक्रिया को मतदाता सूचियों के “शुद्धीकरण” के तौर पर देखता है, और उसकी योजना इसे पूरे देश में करने की है। बिहार की अंतिम सूची में, लगभग 69 लाख नाम मृत्यु, अप्रमाणित नागरिकता, प्रविष्टियों के दोहराव, या दूसरे राज्यों में स्थायी प्रवास जैसे कारणों से हटाये गये। बिहार भाजपा, कांग्रेस, राजद और जदयू के लिए बेहद अहम होगा, क्योंकि प्रत्येक पार्टी अपनी यात्रा में बेहतर मोड़ की उम्मीद कर रही है। उम्रदराज मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस पद पर लगभग 20 साल पूरे कर रहे हैं और उन्हें लेकर सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) दोराहे पर है। भाजपा गठबंधन की बागडोर औपचारिक रूप से अपने हाथ में लेने की इच्छुक हो सकती है, लेकिन उसे यह आकलन करना होगा कि इसका सामाजिक समीकरणों पर क्या असर पड़ेगा। कांग्रेस के लिए, बिहार में उसके प्रमुख मुद्दे कसौटी पर होंगे। चुनावी शुचिता और सामाजिक न्याय उसके प्रमुख मुद्दे हैं। कुल मिलाकर, यह एक ऐसा चुनाव है जिसमें सबसे बड़ा दांव निर्वाचन आयोग का लगा हुआ है, और भारतीय लोकतंत्र में योगदान देने वाले सभी लोग उम्मीद लगाये बैठे हैं कि वह सुर्खरू होकर सामने आए।

Raksha Times
Author: Raksha Times

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